भूख

है, भयानक भूख,

पूछा अपनी माँ से

हैं क्या ये माँ

न ये दिखती है

न छू सकू मैं इसको

बस कर सकू मैं इसको महसूस

अमीर के लिए हैं ये कुछ नयी,

बन गया गरीब के लिए संकट,

सूरज की रोशनी मै

खुलती आँखो से आता ख्याल,

दो वक़्त रोटी के

पेट मे पल रही भूख

क्यों बन जाती हैं ये आग

देखा हमने मां को

पेट मे न डाला रोटी का निवाला

बस मुस्कुराहट कर कहती हैं,

है नहीं मुझे भूख

ये भूख आती क्यों है सताने हमे

जब न हुआ इसका रास्ता

राहो मे भटकती भूख

ढूँढे अपना रास्ता

मिले ये रास्ता एक दिन का

दूसरे दिन मिले वही संकट,

अब तो मौत से भी डर नहीं लगता

जब चलती हैं ये साथ